भाग - ३ ( अन्तिम भाग ) मालगाड़ी को रुके कुछ देर हो चुकी थी, लेकिन डिब्बे के भीतर की शून्यता शायद विनोद के दिमाग में भी फैल गई थी । इसीलिए झटके और धक्कों का थम जाना वह तुरन्त भाँप नहीं पाया । लेकिन अगले ही क्षण वह खड़ा हो गया । उसकी सभी इन्द्रियाँ सतर्क हो चुकी थीं । बाहर काफ़ी रोशनी थी । ज़रूर कोई स्टेशन आया होगा । लेकिन क्वारीसाइडिंग के बाद इतना बड़ा स्टेशन तो राउरकेला का ही था । तो क्या वह वापस राउरकेला पहुँच चुका था ? मालूम करने का एक ही तरीक़ा