शायरी - 11

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ऐ दिल तु मुझे प्रेम के बंधनों में मत उल्हजा, ये जिससे हो जाता है वही छोड़ जाता है।।अजीब मुसीबत है रूठे हुए को मनाना भीमान जाए तो छोड़ता हिं नहीं और न माने तो छूटता ही नहीं।।ये एक कमी उन्हें भी रुलाती होगी ,इश्क़ उन्हें भी होता होगा याद उन्हें भी आती होगी।।हम ही यहां तड़पते है ऐसा नहीं होता होगा,वो भी किसी की बांहों में तड़प तड़प के सिसकती होगी।।एक यही वाक्या उनके साथ न होता होगा,मैं हांथ पकड़ने की इजाजत लेता वहां तो खुद बांहों में जाती होगी।।हम क्या जाने अब उनका क्या क्या होता होगा,हम कंधे