भक्ति माधुर्य - 7

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7सूरदास – भक्ति रस परम माधुर्य  अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल। काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥ महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल। भरम भरयौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥ तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल। माया कौ कटि फैंटा बांध्यो, लोभ तिलक दियो भाल॥ कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल। सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल॥   भावार्थ : संसार के प्रवृति मार्ग पर भटकते-भटकते जीव अंत में प्रभु से कहता है, तुम्हारी आज्ञा से बहुत नाच मैंने नाच लिया। अब इस प्रवृति से मुझे छुटकारा दे दो,