भूटान लद्दाख और धर्मशाला की यात्राएं और यादें - 11

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11 पहला दिन- इन सालों में उम्र का प्रभाव व सावधानी जरूरी थी। फिर मुझे कोई जल्दी भी नहीं थी। आज मैं नाश्ता करके पैदल ही घूमने निकली। सोचा आसपास आगे कोई दर्शनीय स्थल देखने जाना चाहूँगी तो चली जाऊँगी। अपने होटल से पैदल बाहर निकल कर इन पतली सड़कों पर चलना अच्छा लग रहा था। प्रकृति का साथ कितना हसीन हो सकता है। चारों तरफ पर्वत या पेड़ दिख रहें हैं। हम शहरों में रहने वाले लोगों को ये सुकून कितना जरूरी है! ठंडी हवा, गुनगुनी धूप में अकेले चलने का सुखद अहसास मेरे तन-मन को एक नयी ऊर्जा