मैं भी फौजी (देश प्रेम की अनोखी दास्तां) - आखिरी भाग

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मैं उस कारखाने में पहुंचा जहां में काम किया करता था...अपना भेष बदलकर उसी रात मैं उस सुरंग के रास्ते दुश्मन देश में दाखिल हुआ .....दिल में आग और आंखों में नफ़रत की ज्वाला लिए मैं वहां पहुंच गया....काफी समय मैं वहां भेष बदलकर आम लोगों की तरह रहामुझे रुस्तम सेठ तक पहुंचने के लिए आखिर रास्ता मिल गया ...जब मैं उसके बेटे से मिला .....तब मैंने उससे दोस्ती का नाटक शुरू किया.... उसकी दोस्ती का भरोसा आखिर मैंने जीत लिया....अब बस सही समय का इंतजार करता रहा और वो मौका जल्द ही मुझे मिल गया .... वो समय बहुत