माँ को कौन समझता है...

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ये कहानी है उस मां की है, जिसने अपने बच्चों को पाल पोसकर इतना बड़ा तो कर दिया ताकि वो अपने कदमो पर खड़े हो पाए , पर शायद वो उन बच्चों को दुनियादारी नहीं सिखा पाई कि बुढापे में मां का ख्याल भी रखना होता है, जैसे बचपन में माँ बच्चों का ख्याल रखती है।बचपन में जो मां आपको भगवान का रूप लगती है, शादी होते ही वो न जाने कैसे आपको घर में भी बोझ लगती है....शायद इन पंक्तियों में उस माँ का दर्द आप महसूस कर पाओ। अपनी पूरी जिंदगी जो मां अपने बच्चों के नाम के लिए