मदिराधिक्य से लाल चेहरे वाले लालचंद का संदेश पढ़कर पहले उसकी कान की लौ लाल हुई फिर चेहरा |समझ क्या रखा है उसे इस ललमुंहे बानर ने |एकांत में छिपकर पढ़ने वाली मस्तराम की कोई कहानी या चोरी से देखने वाली नीली फिल्म या कोई डेस्टबीन या लावारिस पड़ी हुई कोई जमीन ,जिसपर वह अपने देह और दिमाग का सारा कचरा डाल सके |शायद अकेली स्त्री को लगभग सारे पुरूष कुछ ऐसी ही चीज समझते हैं |उसने तो उसे साहित्य संस्कृति से जुड़ा प्रगतिशील बुद्धिजीवी समझा था पर वह तो किसी सामंती पुरूष से भी गया-गुजरा निकला |क्या वह भी