मॉटरनी का बुद्धु--(भाग-14)कार में दोनो चुपचाप बैठे थे। जब हम बहुत खुश होते हैं या दुखी दोनो हालातों में समझ ही नहीं पाते कैसे रिएक्ट किया जाए। संभव को भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे!! भूपेंद्र जी ने उसे हलवाई की दुकान पर रूक कर जलेबी रबड़ी लाने को कहा, वो चुपचाप बिना सवाल किए लेने चला गया।भूपेंद्र जी को जलेबी रबड़ी जितनी नापसंद थी ,संध्या को उतनी ही ज्यादा पसंद, वो आज संध्या की मनपसंद चीज ले कर घर जाना चाहते थे। शाम का वक्त था और हलवाई जलेबी बना रहा था तो संभव को