अदिति और विजय के विवाह को नौ वर्ष पूरे हो चुके थे लेकिन अब तक भी घर में बच्चों की किलकारियाँ नहीं गूँजी थीं। विजय के माता-पिता तो बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे कि वे कब दादा-दादी बनेंगे। अदिति और विजय ने क्या-क्या नहीं किया। शहर के बड़े से बड़े डॉक्टर को दिखाया। मंदिरों में जाकर माथा टेका लेकिन भगवान उनकी पुकार सुन ही नहीं रहा था। इसी तरह एक वर्ष और गुजर गया। धीरे-धीरे निराशा उनके जीवन में गृह प्रवेश करने लगी। अड़ोस-पड़ोस के छोटे-छोटे बच्चों को देखकर अदिति का मन भी ललचा जाता। कोई उसे भी माँ