व्यंग्य बुरे फंसे कार खरीदकर

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व्यंग्य बुरे फंसे कार खरीदकरयशवन्त कोठारी पहले मैं बेकार था। अब बाकार हो गया हूंॅं। कार का रंग मेरे दिल के रंग की तरह ही काला हैं। कहते हैं कि काले रंग पर किसी की नजर नहीं लगती इसी कारण मैंने इस कार का रंग भी काला ही लिया हैं, मगर अफसोस कार खरीदते ही इस पर आयकर वालों की नजर लग गई।आयकर वालों से नजर बचाई तो ट्ेफिक पुलिस वाले ने मुझ पर सीट बेल्ट नहीं बांधने पर जुर्माना ठोंक दिया जुर्माना भर कर आया तो कार को क्रेन उठाकर ले गई थी। वहां से निपटा तो पता चला