कालचक्र की गति इतनी तीव्र हो गयी कि किसी को सोचने-समझने और चिंतन का अवकाश ही न मिला। भरोड़ा की हवेली में बरतुहार बनकर स्वयं माया दीदी पधारी थीं। माया दीदी की प्रतिष्ठा-ख्याति तो सम्पूर्ण अंगदेश में व्याप्त थी ही, परन्तु भरोड़ा में उनका जैसा अपूर्व सत्कार हुआ, उससे स्वयं माया भी अभिभूत हो गयीं।सम्पूर्ण भरोड़ा और बखरी के समस्त अंचल में बंदनवार सजाये गये। मार्गों के स्वच्छ कर उनको जल से सींचा गया। राजप्रासाद को फूलों से सजाया जाने लगा। दोनों अंचल में उत्साह का ऐसा संचार हुआ कि निवासियों तक ने विवाहोत्सव में धारण करने हेतु नवीन वस्त्र