रात का दूसरा प्रहर बीतने को आया, परन्तु मधुरिया माय की आँखों से नींद गायब थी। पति गनौरी गोढ़ी की आँखें निद्रा के बोझ तले बोझिल होती जा रही थीं, परन्तु मधुरिया माय की जिद थी कि समाप्त ही नहीं हो रही थी।'मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं! हम कहाँ जाएँगे? क्या करेंगे और क्या खाएँगे? ...मैं कुछ नहीं जानती। मुझे अब इस नरक में और नहीं रहना है... बस। हमें साथ लेकर इस डायन के देश से बाहर चलो।'गनौरी चिन्तामग्न हो गया। खीझकर उसने कहा-' कुछ समझती तो हो नहीं... हठ पर अड़ी हो। देश-काल का कुछ भी ज्ञान नहीं