(48)दीपांकर दास ने ध्यान से उस शख्स को देखा। उसे पहचान कर उसने आश्चर्य से कहा,"तुम ? यहाँ कैसे आए ?"उसके सामने शिवराम हेगड़े खड़ा था। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि वह कुछ समझ ही ना पा रहा हो। उसने फर्श पर फैले खून को देखा। उसे उबकाई आ गई। फिर उसकी नज़र सरकटी लाश पर पड़ी। उसके पास ही शैतान वाला मुखौटा पड़ा था। वह डर गया। शिवराम हेगड़े के लिए वहाँ खड़ा होना कठिन हो रहा था। वह कमरे से बाहर निकल गया। दीपांकर दास भी उसके पीछे पीछे बाहर आ गया। वह खुद बहुत