शादी की सभी रस्में पूर्ण हो चुकीं थीं,चूँकि शादी उसी शहर में थी तो सभी बाराती अपने अपने घर वापस लौट गए थे,कुछ ख़ास मेहमान बचे थे तो उनके ठहरने का इन्तजाम रघुवरदयाल जी यानि कि जो अब मधुसुदन के पूज्यनीय ससुर बन चुके थे उनके बंगले पर कर दिया गया था,ये तय हुआ कि विभावरी की विदाई सुबह होगी और शाम तक वो फिर अपने पति के साथ रघुवरदयाल जी के घर लौट आएगी... सभी बचे हुए हुए बाराती उस रात रघुवरदयाल जी के बंगले पर ही ठहर गए और फिर मधुसुदन को भी उसके सुहाग कक्ष में