वामांगी२१ फरवरी,१९९२ की बात है, इस दिन और वर्ष को कैसे भूल सकती हूँ| इसी दिन तो उनके घर में एक हादसा हुआ था | वह मेरे पड़ोस में ही तो रहते थे, भूषण जी, उनकी पत्नी वामांगी एवं उनकी इकलौती बेटी शोभा जिसका विवाह हो चुका था| उस दिन हमारे फ्लेट की घंटी बजी थी, घर की घंटी बजना कोई ख़ास बात नहीं, परन्तु उस दिन घंटी के साथ-साथ बाहर से किसी महिला की आवाज़ आ रही थी| वह आवाज़ जानी-पहचानी थी, मैं दरवाज़े की ओर लपकी और जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, देखा तो सामने वामांगी औंटी थीं|