वसुधा की व्यस्तता बढ़ती ही जा रही थी। अरुण जैसे जैसे बड़ा हो रहा था उसकी शरारतें भी बढ़ती जा रही थी। वसुधा के घर ना रहने पर तो रागिनी और जयंती उसे संभाल लेती थी, पर वापस घर आने पर वो किसी के पास नहीं रहता। बस उसे वसु के साथ ही रहना होता। थकी होने के बावजूद वसु को उसे संभालना ही होता। अरुण उसकी प्राथमिकता था। उसे वो किसी भी कीमत पर नजर अंदाज नहीं कर सकती थी। वसु अरुण में ही व्यस्त हो जाती थी। विमल जब भी मार्केट चलने या पिक्चर चलने को बोलता वो