.... रफीक़ के अगले कुछ दिन सुहाना की यादों के सहारे ही गुजरे। कितना भी खुद को समझाने की कोशिश करे, पर मन तो मानने को तैयार ही न था। बुझे मन से ऑफिस जाना और वापस आकर अपने कमरे में बंद हो जाना। खाना भी अब वह अपने कमरे में ही मँगा लिया करता। इसलिए घरवालों से भी ज्यादा बातचीत न हो पाती। कभी छोटी बहन ज़ीनत उससे बात करने की कोशिश करती तो उसे भी डांट कर भगा दिया करता। उसकी ऐसी हालत पर घर के लोग भी बड़े फिक्रमंद रहा करतें। एक दिन। रफ़ीक़ अपने कमरे में