अनपढ़

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"अनपढ़" -डा जय शंकर शुक्लदोपहर का समय, फिर भी हल्की-हल्की धूप खिली है। फाल्गुन का उत्सव, होली का दिन चारों ओर धूम-धम्क्कड़ ढोल-नगाडों के साथ नाचती-गाती युवकों की मंडली जोर-जोर से चिल्लाती –“होली है। - बुरा न मानो होली है।“ चारों ओर रंग ही रंग लहरा रहें है। आने-जाने वाले सभी के चेहरे लाल, पीले, हरे, काले, इन्हें देख आज लंगूर भी शरमा जाए। लड़खड़ाते हुए, पानी की बोछारों का आनंद लेते अपनी-ही मस्ती में चले-जा रहे हैं। कोई किसी की शर्ट रंग रहा है, तो कोई चेहरे पर गुलाल रगड़ रहा है। बच्चे भी इनके ऊपर पिचकारी से रंग डालकर