प्रेतनी की दरियादिली

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गर्मी का महीना। खड़-खड़ दुपहरिया। रमेसर भाई किसी गाँव से गाय खरीद कर लौटे थे। गाय हाल की ही ब्याई थी और तेज धूप के कारण उसका तथा उसके बछड़े का बुरा हाल था। बेचारी गाय करे भी तो क्या, रह-रह कर अपने बछड़े को चाटकर अपना प्यार दर्शा देती थी। रमेसर भाई को भी लगता था कि गाय और बछड़े बहुत प्यासे हैं पर आस-पास में न कोई कुआँ दिखता था और ना ही तालाब आदि। रमेसर भाई रह-रहकर गमछे से अपने पसीने को पोंछ लेते थे और गाय के पीठ पर हाथ फेरते हुए धीरे-धीरे कदमों से पगडंडी