कर्तव्य की अवहेलना

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कर्तव्य की अवहेलना हम जबलपुर से हावड़ा जा रहे थे। मेरे साथ मेरे दो मित्र थे। उन दोनों में से एक मित्र को शराब की लत थी। गाड़ी जब सतना के पास पहुँची तब तक शाम हो चली थी लेकिन उनके स्टॉक शराब नही थी और उन्हें शराब की तलब सताने लगी। उन्होंने मेरे दूसरे साथी को अपनी व्यथा बतलाई। दूसरे साथी को भी मित्रता निभाने की धुन सवार हुई। उन्होंने टिकिट कंडक्टर को बुलाकर यह कहते हुए कहा कि पैसा चाहे लग जाए पर मित्र की आवश्यकता पूरी हो जाए। कंडक्टर ने बतलाया कि दो हजार रू. लगेंगे।