निया उस दिन के बारे में सोच ही रही होती है, की उतने में इसकी सहेली सिमरन का फोन आ जाता है। "कर दिया मैंने तेरा काम।" "है? कैसे?" "मैंने इस शनिवार को सबको यहां पार्टी प्लेस रेस्ट्रो में बुलाया है, २ बजे, सिवाय अंकित के।" "तो?" "उसे मैंने १:३० बजे बुलाया है।" "मतलब?" "मतलब बेवकूफ तू भी यहां १:३० बजे पहुंच जाइयो। और जब तक सब नहीं आते, आराम से उससे बातें करियों।" "अरे हां.. बहुत बढ़िया। मैं पहुंच जाऊंगी, तू बस उससे ख़बर लेती रहियो।" "हां.. उसकी चिंता तू ना कर।" सिमरन की ये बात सुन कर, निया का मन जैसे शांत सा हो गया। आखिर होता भी