बसंती की बसंत पंचमी - (अंतिम भाग)

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श्रीमती कुनकुनवाला भी सब कुछ जान लेने के बाद अब हल्के- फुल्के मज़ाक के मूड में आ गईं। उन्हें इस बात की हैरानी हो रही थी कि बच्चों ने देखो कितना दिमाग़ दौड़ाया। कहां से कहां की बात सोची। सच में, उस समय किसी को ये सब सोच पाने की फुरसत ही कहां थी? सबका कलेजा डर से मुंह को आया हुआ था। न जाने कब क्या हो जाए? कब कौन सी मुसीबत टपक पड़े। और ये बच्चे भी देखो, किस शरारत में लगे पड़े थे! वे बोलीं- अच्छा, मगर ये फ़िल्म का क्या चक्कर था? ये कौन लोग थे