दिलीप कुमार अपनी सेहत को लेकर हमेशा बहुत सजग रहते थे। कैरियर के आरंभिक दौर में उनकी कई चुनौतीपूर्ण फ़िल्मों के चलते उनके मन में हमेशा कोई भय बना रहता था। वे अपने किरदार के ढांचे- खांचे में उतरना ज़रूरी समझते थे। उन्हें लगता था कि जब वो अपने कैरेक्टर के जिस्म में परकाया प्रवेश करेंगे तभी फ़िल्म सफ़ल होगी। वे पर्याप्त तैयारी करते थे। इस आदत के चलते ऐसा हुआ कि दुखद भूमिकाओं में ढलते- ढलते उनके व्यक्तित्व में एक धीर गंभीरता घर कर गई। वो अपने पात्र के दुख को महसूस करते हुए उसे व्यक्तिगत तौर पर जीते