धर्म की बेड़ियाँ खोल रही है औरत

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निर्झरी मेहता, वड़ोदरा श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ द्वारा संपादित इस किताब का शीर्षक, जो कि थोड़ा-सा लंबा महसूस हो सकता है लेकिन यह पुस्तक एक विभावना विशेष की लौ से आलोकित विशिष्ट अनुभूति को हमारे सम्मुख प्रगट कर रही है। यह विभावना की लौ का प्रागट्य कैसे हुआ यह भी अनूठी साहित्य घटना कही जा सकती है । इस पुस्तक के सम्पादन की मैं गवाह हूँ क्योंकि मैं भी उन दिनों अस्मिता, महिला बहुभाषी साहित्यिक मंच, वड़ोदरा, गुजरात की सदस्य थी। अस्मिता की मासिक गोष्ठियां तब अरविन्द आश्रम, दांडिया बाज़ार के लॉन में हुआ करतीं थीं। तब वहां सीता, गांधारी व