कैथरीन और नागा साधुओं की रहस्यमयी दुनिया - 14

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भाग 14 5 वर्ष हिमालय में तपस्या कर नरोत्तम गिरी हरिद्वार लौटा। आते ही उसे बुखार ने जकड़ लिया। अखाड़े के वैद्य जी ने जड़ी बूटियों का काढ़ा पिलाया पर बेअसर। महीना भर गुजर गया। बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था। छाती में कभी-कभी तेज़ दर्द उठता और वह तड़प जाता।  " यह तुम्हें क्या हो गया नरोत्तम?" गुरुजी उसकी हालत पर चिंतित थे।  " ठीक हो जाएगा गुरुजी। अभी समय अनुकूल नहीं है। व्याधि के घेरने का यही कारण है। " नरोत्तम ने गुरुजी को प्रणाम करते हुए कहा।  " मुझे लगता है तुम्हें विशेषज्ञ को