पद्मश्री और मैं

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पद्मश्री और मैं यशवन्त कोठारी हर काम बिल्कुल सुनिश्चित पूर्व योजना के अनुरूप हुआ। इसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं था। मुझे यही उम्मीद थी, और मेरी उम्मीद को उन्होने पुर्ण निप्ठा के साथ पूरा किया था। किस्सा कुछ इस तरह है, उन्होने इस बार अपने कांटे में एक बड़ा केंचुआ बांधा, जाल डाला और किनारे पर बैठकर मूंगफली का स्वाद चखने लगे। मैं भी पास ही खड़ा था। पूछा तो उन्होंने बताया, इस बार उन्होने इस बड़े केंचुए को इसलिए बांधा है कि कोई बहुत बड़ी मछली उनके जाल में फंसे ; और उन्हें इस बात का विश्वास था कि