ख़ाम रात - 14 - अंतिम भाग

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थोड़ी देर के लिए मैं भूल गया कि घड़ी चल रही है, समय चल रहा है, दुनिया चल रही है! मैं ये भी भूल गया कि हर बीतते लम्हे का मैं भुगतान करने वाला हूं। समय मेरे ही ख़र्च पर गुज़र रहा है। मेरी सांसें तेज़ी से चल रही थीं। मुझसे थोड़े से फासले पर एक और देश के सुरीले बदन में धड़कनें किसी धौंकनी की तरह चल रही थीं। मैं इस उधेड़बुन में था कि क्या मैं बगल वाले बिस्तर की ओर बढ़ जाऊं? क्या मैं सचमुच मुझे मिले मौक़े का फ़ायदा उठा कर इस पल के वर्तमान में