"दीदी, पहचाना ?"कुछ क्षण लगे, पर उन ऊपर को मुड़ी रेशमी पलकों ने परिचय सूत्र स्वयं ही थमा दिया।"धृति हो ना? इधर कैसे? " मेरे स्वर में सामान्य शिष्टाचार ही था, पर धृति , वो तो पन्द्रह वर्ष पूर्व की दित्तू बनी टहुकने लगी।" हां दीदी, धृति ही हैं, इधर लॉ कॉलेज में एलएलबी कर रहे, थर्ड ईयर। हर्षिता दीदी भी वहीं है, फिफ्थ ईयर में। शिवाजी नगर में पी जी में रहते हैं। पर आप इधर कैसे? "अपने जन्मस्थान के बाजारों का मोह बचपन के घर से कम किधर होता है। मां तो कहती थी " इस लड़की ने