कविता संग्रहइश्क से हो तुम....हर सुबह की ढलती हुए गौधूली सांझ,सूरज की धीरे धीरे नम होती गरमीऔर साथ में नुक्कड़ की कड़क सी चायबस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"नीले से आसमान में वो घनघोर से बादलरिमझिम बरसती बारिश में,घटादार वृक्ष के शाख के बीच में से मुस्कराती धूप,बस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"अरसो से प्यासे उस बंजर रेगिस्तान औरकिसी हिरण की मृगतृष्णा को मयस्सर होने वालीवो अनमोल पानी की कुछ बूंदेबस यह अनुभूति कराने वाले किसी "इश्क़ से हो तुम"किसी बच्चे को अनायास मिलने वाला खिलौना,किसी नवविवाहित को ससुराल में मिलने वाला