वेश्या का भाई - भाग(१४)

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बहु-बेग़म झरोखे पर अपने बीते हुए कल को याद करने लगी,उसके अब्बाहुजूर निहायती गरीब थे,उसकी अम्मी कैसे एक एक चीजों की बजत किया करती थी,अब्बा किसी जमींदार के यहाँ मुलाजिम थे,उसके खेतों में काम किया करते थे,बस दो वक्त की रोटी जुट जाती थी नसीब से, उस वक्त हमने जाना था कि ग़रीबी क्या होती है? जब पेट के लिए रोटी ना हो और बदन पर कपड़े ना हो तो वो ग़रीबी कहलाती है,सर्दियों में झोपड़े में आते ठण्डी हवा के झोंकें हड्डियाँ तक कँपा जाते थे और गर्मियों में गर्म हवा के थपेड़े बदन झुलसाने का काम करते