वो फूल रानी

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( हरीश )बीस बरस बाद उस शहर जाना हो रहा था जिधर ये कहानी शुरू हुई थी। जन्मभूमि नही, मेरी कर्मभूमि ।।घर पड़ोस के जिले के एक गांव में था। बारहवीं तक तो जस तस कर खींच लिया, फिर इंजीनियर बनने के सपने सजाए शहर आया। एक हफ्ते में आटे दाल का भाव पता चल गया। नौवीं कक्षा से तैयारियों में लगें थे लड़के। वो तो भला हो उस दूर के रिश्तेदार का, जिसने सलाह दी कि साथ ही कॉलेज में भी दाखिला ले लो, ड्रॉप ईयर के बाद मुश्किल होती है। अपने राम तो महत्वाकांक्षा के परों पर सवार थे,