वह रात अच्छे से बीता था। अवधूत के बारे में नहीं जानता लेकिन मुझे मां की कई प्रश्नों का सामना करना पड़ा था। जैसे कि पिछले कुछ दिनों से मैं घर के बाहर इतना क्यों जा रहा हूं? इतनी रात घर क्यों लौटता हूं इत्यादि? अगला दिन बहुत ही चिंता में बीता, क्योंकि उसके घर सीधा जाए बिना अवधूत से कांटेक्ट करने का कोई उपाय नहीं है? वैसे इस वक्त वह अपने घर नहीं होगा, बाराबंकी कृष्ण प्रसाद भट्टराई जी को लेने गया होगा। शाम तक मैं अवधूत के एड्रेस पर पहुंच गया। कई लोगों से पूछने के बाद आखिर