" कितना कुछ छोड़ के जाना पड़ रहा है, मेरी बार, मेरे प्लांट्स। पता है , फाइकस को कितनी प्रूनिंग लगती है.......और लंदन में ठंड कितनी पड़ती है। इधर के वूलेन तो उधर किसी काम के नही। सोच रहे हैं कि इधर बस एक दो सेट ले । बाकी उधर ही खरीदेंगे।,"धीर गम्भीर अखिल का उत्साह फोन से छन छन कर आ रहा था, पर कली उस में भीग नही पा रही थी। उस का हृदय फटा पड़ रहा था।बड़ी देर बाद अखिल को बोध हुआ कि दूसरी ओर शान्ति थी। करती थी कभी कभी कली ऐसा.... एकदम चुप हो