जब तक ऋषि की ट्रेन संचिता की आखों से ओझल नहीं हो गई , तब तक वह उस ट्रेन को भरी आखों से देखती रही । अनुज ने उसे इस तरह एक टक ट्रेन की दिशा में देखते हुए देखा , तो बोला । अनुज - चलिए दी । ट्रेन जा चुकी है । संचिता - तुम जाओ अनुज , मैं थोड़ी देर बाद आऊंगी । संचिता की हालत देख और उसके जज्बात को समझ अनुज ने उसे कुछ देर अकेला रहने देना ही बेहतर समझा । अनुज वहां से चला गया और संचिता जाने कब तक वहीं जड़वत खड़ी