स्त्री......(भाग-40)हम सब बहुत खुश थे.....और सबसे ज्यादा मैं। माँ, पापा, तारा और घर के सब दूसरे नौकर सब के लिए आशु(आशुतोष) जैसे एक बेशकीमती खिलौना था। माँ और तारा दोनो मिल कर उसको संभाल लेती थी जब भी मैं काम में होती। ममता भी तो थी तारा के साथ तो सब कुछ संभला रहता था....माँ की हेल्थ भी और आशु भी....! पापा बहुत खुश थे कि मेरा काम भी बढ़ रहा है...सोमेश जी और आशु के साथ मैं माँ पिताजी और राजन से मिलने हरियाणा हो कर आयी थी। वहाँ सब ठीक और खुश थे, देख कर मुझे भी तसल्ली