अगले दिन 4 बजे बस स्टैंड पर अवधूत से मिला। वह सही सलामत है यह देखकर मेरे मन को शांति प्राप्त हुई। मूर्ति उसे हैंडोवर करके मैं बहुत ही चिंता में था। वहाँ से बाराबंकी के लिए बस पकड़ा। बस से बाराबंकी जाते हुए मैंने अवधूत से पूछा, " कल रात तुमने भी कुछ देखा? " अवधूत ने बोलना शुरू किया, " हां , मैंने सोचा था कि तुम्हें बताऊंगा। तुमने जो कुछ भी देखा था वह सब एकदम सही है। उस मूर्ति को जानबूझकर ही मैंने अपने कमरे में रखा था। कल रात को बहुत ही ठंड लगने के