मैं लखनऊ शहर में जिस जगह रहता हूं, गोमती नदी वहां से ज्यादा दूर नहीं है। वहां तक चल कर ही पहुंच सकता हूं। सूर्य के पश्चिम में ढलने से पहले ही मैं निकल पड़ा। उस मूर्ति को एक अखबार में लपेटकर बैग में रख लिया है। उसे स्पर्श करने में भी अब मुझे डर लग रहा है। पहली बार इस मूर्ति को देखकर यह कितना सुंदर लगा था लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि नहीं इसमें सुंदरता नाम की कुछ भी नहीं है। वीभत्स,भयानक उसमें कोई सुंदरता नहीं है। मूर्ति को देखकर ही शरीर में डर दौड़ जाता है।