भगवंत क्रिपाहि केवलम

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◆◆◆◆||દોહો||◆◆◆◆ क्रिपा मिले किरतारकी,फोगट छूटत फंद। मुग्ति महारस माणिये,दुविधा तूटत द्वंद। ◆◆◆◆◆ ||સવૈયા ઇન્દ્રવીજય||◆◆◆◆◆ज्ञान मिले विगनान खिले विदवान कहावत बोत वडेरो।मान मिले सनमान मिले धनवान गणावत धाम धणेरो।मीत मिले बहु प्रीत मिले ग्रजवान दिखावत स्नेह सनेरो।"भाव"भणे भगवंत क्रिपा बिन आवन जावन फोगट फेरो।(१)ताज मिले बहु राज मिले सुरसाज मिले त्रयलोक तुमेरो।बाज सजे गजराज सजे परवाज सजे वइमान बडेरो।देश अरू परदेश धुमावत अंग सजावत वेष अनेरो।"भाव"भणे भगवंत क्रिपा बिन आवन जावन फोगट फेरो।(२)आश धरी बहु जोग जगावत भोग रमावत प्यास उंँडेरो।दास तणो खुददास गणावत अन्तरमे अभिमान दबेरो।दंभ करी