झूठ का संसार

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मैं हर दिन एक झूठ कहता हूं। मेरे झूठ कहते ही एक नया संसार बनकर तैयार हो जाता है, जिसे में सच समझकर उसे दिनभर जीता हूं। असल में मुझे अपना झूठ सच के सामान लगता है। हर दिन नया जीवन जीने एक सच जैसा झूठ कहता हूं। वास्तव में झूठ को बड़े शिद्दत से जीना पसंद है। जैसे कल ही बात है लाइब्रेरी में किसी ने परिचय पूछा जवाब देने पहले समय देखा एक बजे हुए थे। सच कहना चाहता था, लेकिन नाम बताते हुए कहा, मैं चित्रकार हूं, जो इस लाइब्रेरी में ढेरों चेहरों से एक नया चेहरा