शहर लौटने के बाद फोन पर सत्येश से बातों का सिलसिला शुरू हो गया |जब भी दोनों बातें करते खूब हँसते |अपूर्वा को अच्छा लगता कि जिस हंसी को वह कब का दफन कर चुकी थी ,वह फिर से उसके जीवन में लौट आई है|वह सत्येश से खूब बातें करना चाहती, पर वे ज्यादा काम न होने पर भी व्यस्त रहते थे और वह काम के बोझ से लदी होने पर भी जैसे खाली थी |शायद यह उसके भीतर का खालीपन था जो उस पर हावी हो जाता था|जीवन में किसी का न होना भी शायद ऐसे ही खालीपन से