बागी स्त्रियाँ - भाग पन्द्रह

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ज्यों ही पहाड़ दिखने शुरू हुए अपूर्वा खुशी से चीख पड़ी |घने जंगलों से भरे पहाड़,ऊबड़-खाबड़ ,मजबूत ,सुंदर पहाड़!प्रकृति की अद्भुत कारीगरी|चारों तरफ हरियाली ही हरियाली|वह किसी बच्ची की तरह विस्फारित नजरों से उसे निहारे जा रही थी |वातानुकूलित बस अपने पूरे रफ्तार से भागी जा रही थी|दिल्ली से शिमला तक कि यह बस -यात्रा ख़ासी लंबी थी|उसने कल्पना भी न की थी कि उसे इतनी लंबी बस -यात्रा करनी पड़ेगी|बस से यात्रा करने से वह हमेशा बचती थी क्योंकि लंबी बस यात्रा से उसे चक्कर आने लगता था |पर साथ सत्येश थे तो उसे कोई परेशानी नहीं थी |वे दोनों ही किसी साहित्यिक कार्यक्रम