संवाद करती परछाइयाँ –बालेश्वर सिंहरंजना जायसवाल के कविता –संग्रह ;मछलियाँ देखती हैं सपने की समीक्षारंजना जायसवाल के प्रथम काव्य –संग्रह के बारे में परमानंद श्रीवास्तव ने फ्लैप पर लिखा है कि-संभव है कि उसमें एक तरह का कच्चापन और अनगढ़पन लगे .....|वे एक बड़े आलोचक हैं और उनकी दृष्टि बड़ी पैनी है |उन्होंने संकलन की कविताओं की खुलकर प्रशंसा की है |ठीक ही की है |कागज पर लिखने भर का नहीं वास्तविक दुनिया से जिरह करने ,पूछने ,उलझने का साहस |’उनके द्वारा प्रयुक्त 'उलझने' शब्द बहुत महत्वपूर्ण है |उसमें जो व्यापकता है वह शायद टकराहट शब्द से ध्वनित नहीं होती |फिर भी मुझे लगता है कि परिपक्वता और सुगढ़पन की