प्रथम परिच्छेद : देवमन्दिर बङ्गदेशीय सम्वत् ९९८ के ग्रीष्मकाल के अन्त में एक दिन एक पुरुष घोड़े पर चढ़ा विष्णुपुर से जहानाबाद की राह पर अकेला जाता था। सायंकाल समीप जान उसने घोड़े को शीघ्र हांका क्योंकि आगे एक बड़ा मैदान था यदि दैव संयोग से अंधेरा होजाय और पानी बरसने लगे तो यहां कोई ठहरने का अस्थान न मिलेगा। परन्तु संध्या हो गई और बादल भी घिर आया और रात होते २ ऐसा अँधेरा छा गया कि घोड़े का चलाना कठिन होगया केवल कौंधे के प्रकाश से कुछ कुछ दिखाई देता था और वह उसी के सहारे से चलता