812 ईस्वी , पूर्व तरफ से आसमान सफेद हो रहा है। यशभद्र नालंदा बस्ती से बहुत ही दूर चला आया है। नालंदा महाविहार के आस-पास के गावों में रुकने का उसने पागलपन नहीं किया। ओदंतपुरी व विक्रमशिला महाविहार में भी जाकर कोई लाभ नहीं है। वहां पर भी उसे प्रवेश नहीं मिलेगा क्योंकि इन दो महाविहार के साथ नालंदा महाविहार का एक घनिष्ठ संबंध है इसीलिए अब यशभद्र की यात्रा उद्देश्यहीन है। कहीं रुकने की एक जगह खोजना ही अब उसके लिए जरूरी कार्य है। अपमान व क्रोध से उसका सिर गरम हो गया है। बाल्यावस्था से ही नालंदा महाविहार