हिन्दू समाज को टूटने से रोकने में उपन्यास एकलव्य मिथिला प्रसाद त्रिपाठी निदेशक कालीदास संस्कृत अकादमी म.प्र. संस्कृति परिषद, उज्जैन दिनांक-9.4 .20.07 प्रिय भावुक जी आप से ली हुई पुस्तक एकलव्य मैं दो दिन में पूरा पढ़ चुका हॅूं । एकलव्य के चरित्र के प्रति समर्पण व आपकी लेखनीय निष्ठा अप्रतिम है। अर्जुन, द्रोणाचार्य क्या श्रीकृष्ण से भी उत्कृष्ट चरित्रांकन करते हुए उपन्यास को समाप्त किया गया है। कई बार कथान्तरों को प्रसंगशःउठा देना, विस्तार दे देना और उसे एकलव्य से जोड़ देना आपकी कल्पना और रचना दोनों का कौशल लगा। ‘जाति’ को रेखांकित करना, वर्णित विवेचनों को चतुराईपूर्वक नकाराना,