मानव जाति के क्रमबद्ध सुव्यवस्थित और सकारात्मक विकास के लिए एक निश्चित दायरे में संरक्षण तथा प्रोत्साहन की आवश्यकता सदैव से ही अनुभव की जाती रही है और की जाती रहेगी। किसी भी लोकप्रिय न्याय पूर्ण शासन व्यवस्था ने इस अहम् तथ्य को सदैव ही स्वीकारा है और यथाशक्ति निवाहा भी है । यदि हम प्राचीन भारतीय इतिहास की ओर एक नजर दौड़ाते हैं तो यह स्पष्ट होता है कि भारतीय शासनपद्धतिनेसदैवसेहीशासित प्रजा की रक्षा, संवर्धन, तथा विकास को शासन की नैतिक जिम्मेदारी का रूप दिया। राजा शिवि से लेकर राजा हरिश्चंद्र, राजा दिलीप, राजा श्रीराम, समुद्रगुप्त, अशोक, महाराणा प्रताप, व