टेढी पगडंडियाँ - 31

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टेढी पगडंडियाँ 31 रात के आठ बज चुके थे । आसमान की चादर में ढेर सारे तारे आ टंके थे । उनकी टिमटिमाहट से भर पूरा वातावरण भर गया था । चाँद अभी अपने घर से सैर पर निकला नहीं था । सङक पर गहरा अंधेरा छाया था । उससे गहरा अंधेरा इस समय गुरनैब के मन पर तारी था । एक अजीब सी उदासी उस पर हावी हो रही थी । पिछले पंद्रह दिनों में घटी घटनाएँ बार बार उसकी आँखों के सामने से गुजर जाती । जंगीर भाइयों का अचानक घर पर आना , चाचा