शौर्य श्रुति को कार मे बैठाए एक झील के पास ले आता है। दोनो कार से उतरते है । श्रुति बाहर का नजारा देखकर बहुत खुश हो जाती है। खुले आसमान के नीचे चांद की रोशनी मे झील का पानी चांदी की तरह चमक रहा था। ऊपर से मन्द मन्द हवा पुरे वातावरण मे मिठास घोल रही थी। श्रुति खुश होते हुये झील के किनारे एक बड़े से पत्थर पर बैठ कर अपने पैरो से पानी मे मारते हुये खेलने लगती है। शौर्य उसे इतना खुश देख खुद भी मुस्कुराते हुये उसके बगल मे आ बैठता है। दोनो एक दुसरे