गगन चढ़इ रज पवन प्रसंगा। कीचहिं मिलइ नीच जल संगा ।।साधु असाधु सदन सुक सारीं।सुमिरहिं राम देहिं गनि गारीं ।।पवन के संग से धूल आकाश पर चढ़ जाती है और वही नीच (नीचे की ओर बहने वाले) जल के संग से कीचड़ में मिल जाती है। साधु के घर के तोता-मैना राम सुमिरते हैं और असाधु के घर के तोता - मैना गिन-गिनकर गालियाँ देते हैं। संत तुलसीदास द्वारा बताया गया संगति का यह महत्व आज भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना उस समय था। गुरुदेव की सुसंगति और सानिध्य में रहकर मेरे जीवन का तम मिट गया और जीवन प्रकाशमय