तोड़ सकोगे सारे बंधन, मुक्ति मार्ग पर कदम बढ़ाकर ।मुक्त स्वतंत्र हो सकेंगे सब, परमानंद व्योम में जाकर ।।अध्यात्मिक उन्मुक्त क्षितिजमें,उड़ जाओ कुछ वहां न हानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।यह तो सच है जीवन अपना, पहले भी था और रहेगा ।अस्थाई तन यहां मिला जो, रहने की वह यहीं कहेगा।।लेकिन जाना भी निश्चित है,इस दुनियां से डाल रबानी।वीणा घर में रखी पुरानी, कदर न उसकी हमने जानी ।।नहीं यथार्थ रूप को जबतक, पहचानोगे,दुखी रहोगे ।देहान्तरण हमेशा होगा, बार - बार यह कष्ट सहोगे ।।मानव जीवन ही वह अवसर,जो दे सकता मुक्ति सुहानी।वीणा घर में